बे-ख़बर हैं आलम-ए-जज़्बात से
लड़ रहा है हाथ अपने हाथ से
किस तरह रक्खूँ किसी से फ़ासला
हैं सभी किरदार ज़िंदा बात से
इसलिए करता नहीं वादा कोई
हो न जाए राब्ता हालात से
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