ख़ुदगर्ज़ी के इस काम से

  - Ankur Mishra

ख़ुदगर्ज़ी के इस काम से
वाक़िफ़ हूँ अपने नाम से

रहने दो तन्हा ही मुझे
डरता हूँ सुब्ह-ओ-शाम से

हैं बे-ख़बर ख़ुद अब तलक़
वो हसरत-ए-अंजाम से

शायद यक़ीं आए उसे
इस आख़िरी पैग़ाम से

  - Ankur Mishra

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