ख़ुदगर्ज़ी के इस काम से
वाक़िफ़ हूँ अपने नाम से
रहने दो तन्हा ही मुझे
डरता हूँ सुब्ह-ओ-शाम से
हैं बे-ख़बर ख़ुद अब तलक़
वो हसरत-ए-अंजाम से
शायद यक़ीं आए उसे
इस आख़िरी पैग़ाम से
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