चाहे आब-ओ-ताब समझ लो या फिर कोई ख़्वाब समझ लो

  - nakul kumar

चाहे आब-ओ-ताब समझ लो या फिर कोई ख़्वाब समझ लो
आवारा फिरना है मुझको चाहो तो महताब समझ लो

समझो मुझको गहराई से पहचानो तो परछाईं से
एक अकेला ही काफ़ी मैं बेशक तुम सैलाब समझ लो

कल तक था मासूम परिंदा आज दरिंदा कहने वालो
पानी को छूकर कर देगा पल भर में तेज़ाब समझ लो

हर इक बात पे बीती बातों से इक बात बनाने वालो
बात वही लेकिन ये तुमको मेरा है आदाब समझ लो

दुनिया क्या है फिर मैं क्या हूँ ये बातें बेकार की बातें
मैं अपनी ख़ातिर ही ठहरा अपना ही नायाब समझ लो

नई कहानी हुई पुरानी मैं इसका किरदार नहीं हूँ
बाक़ी सब छोड़ा है तुम पर जर्जर या शादाब समझ लो

कौन किसे आँखों में रक्खे कौन किसी को दिल में घर दे
तुम जो फिर अशफ़ाक़ अगर हो तो मुझको अहबाब समझ लो

माचिस की तीली की मुआफ़िक़ सर पे आग लिए फिरता हूँ
आग लगानी है दुनिया को इतना हूँ बेताब समझ लो

ऐसी कोई बात नहीं है मेरी कोई ज़ात नहीं है
बैठे बैठे तकता हूँ कुछ समझो तो सुर्ख़ाब समझ लो

  - nakul kumar

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