जब से उसने नम आँखों में काजल पहना है
उस राधा प्यारी ने मुझको मोहन कहना है
इतनी सीधी सादी है बृजभूमि किशोरी है
उसका हँसना उसका खिलना उसका गहना है
ऐसी कोई बात नहीं जो बिछड़न हो जाए
छोड़ के दुनियादारी सब बरसाने रहना है
देख सखी तू जावे तो फिर जा तू अपने घर
हमको तो हर हाल में कान्हा के संग रहना है
राह तकी है वृन्दावन में भरी दुपहरी में
और सहेंगे जो कुछ भी हो हमको सहना है
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