कौन आया है ये मेरे आशियाने में - nakul kumar

कौन आया है ये मेरे आशियाने में
रात भर जगते रहो इसको सुलाने में

जूट की बोरी से ये कुटिया बनाई है
तुम चले आते हो मुफ़लिस के घराने में

मेरी नम आँखों में सावन देखते हैं ये
उम्र भर रोते रहो इनको हँसाने में

कुछ नहीं है ज़िंदगी बर्बाद है अब तो
मर गया हूँ मैं मुहब्बत को मनाने में

कैसे भी गर हो सके मुझको रिहा कर दे
रह नहीं सकता मैं अब इस क़ैद-ख़ाने में

भूख ने तोड़ा है ये मेरा बदन कुछ यूँ
दर्द अब होने लगा रोटी चबाने में

जेब में धेला नही है हाल है बेहाल
आज फिर हड़ताल है इस कारख़ाने में

पेट अपना बन गया अपने लिए जंजाल
पिस गया हूँ आज फिर गेहूँ पिसाने में

आज मेरे बाल बच्चे हो गए बेघर
क्या मिला तुमको मुझे यूँ आज़माने में

- nakul kumar
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