मैं कि जो कुछ भी नहीं हूँ आप मेरे ख़ास हैं - nakul kumar

मैं कि जो कुछ भी नहीं हूँ आप मेरे ख़ास हैं
दूरियाँ दुनिया से हैं दो चार ही जो पास हैं

ख़ुद ही ख़ुद से कट गया है बे-सहारा आदमी
चल रही है लाश लेकिन मर चुके एहसास हैं

कल तलक जो आदमी को आदमी कहते न थे
वक़्त की करवट में देखो आज वो इतिहास हैं

दौलतें हों शोहरतें हों क़ामयाबी चार-सू
आदमी दर आदमी अब सौ तरह की प्यास हैं

मुफ़्लिसी है भूख है मैं खा न जाऊँ यार को
प्यार की बातें अभी मेरे लिए बकवास हैं

- nakul kumar
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