मैं कि जो कुछ भी नहीं हूँ आप मेरे ख़ास हैं
दूरियाँ दुनिया से हैं दो चार ही जो पास हैं
ख़ुद ही ख़ुद से कट गया है बे-सहारा आदमी
चल रही है लाश लेकिन मर चुके एहसास हैं
कल तलक जो आदमी को आदमी कहते न थे
वक़्त की करवट में देखो आज वो इतिहास हैं
दौलतें हों शोहरतें हों क़ामयाबी चार-सू
आदमी दर आदमी अब सौ तरह की प्यास हैं
मुफ़्लिसी है भूख है मैं खा न जाऊँ यार को
प्यार की बातें अभी मेरे लिए बकवास हैं
As you were reading Shayari by nakul kumar
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