कोई न मिलेगा अँगने में - nakul kumar

कोई न मिलेगा अँगने में
सब अपने-अपने कमरे में

गुल जान गँवा बैठा अपनी
इन तस्वीरों को रँगने में

मैं सैर-सपाटा करता हूँ
कुछ वक़्त बिताकर कमरे में

जब याद तुझे कर लेता हूँ
मन लगता नहीं है मरने में

अश्कों से बुझाकर आया हूँ
जो आग लगी है झरने में

ये सोच मुहब्बत कर बैठे
कुछ आसानी हो मरने में

दो क़ातिल देखे फूलों ने
इक माली में इक भँवरे में

नुक़्सान बहुत है अपना भी
जलने से पहले बुझने में

- nakul kumar
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