क्या कहूँ कैसे कहूँ बेहाल हूँ इस हाल में - nakul kumar

क्या कहूँ कैसे कहूँ बेहाल हूँ इस हाल में
बेसुधी में गुम हूँ तेरी यादों के जंजाल में

लोग सुन कर वाह-वाही करते हैं हर बार ही
रोज़ ही रोता हूँ अब तो मैं किसी सुर-ताल में

तेरे दिल में घर किया तो ये लगा मुझको अभी
मेरा तो घर हो गया है काल के ही गाल में

खींच ली है खाल सब ख़ुशियों के ही बिकवाल ने
कौन ढूँढ़ेगा मुझे मेरे ही इस कंकाल में

तू नहीं आया कि अब है साल आने को नया
फिर अधूरा रह गया हूँ इस गुज़रते साल में

लौट आया हूँ समंदर से इसी उम्मीद में
कोई तो मछली मिले ठहरे हुए इस ताल में

जा रही हो छोड़कर मुझको जहाँ आऊँगा मैं
चाहती है इक हसीं मुझको तिरे ससुराल में

क्या करूँ क्या दर्द अपने बाँट लूँ दुनिया से मैं
घोल दूँगा अपने सारे अश्क इस पाताल में

मुझको पूरा खा गया है दिल के दरवाज़े तलक
भेड़िया फिर मिल गया है भेड़ की ही खाल में

- nakul kumar
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