मुझे मिलने को आई है बड़े दिन बाद बेचारी
हॅंसी है खिल खिलाई है बड़े दिन बाद बेचारी
मुझे होंठों से छू कर के कभी माथे पे गालों पे
नमी आँखों में लाई है बड़े दिन बाद बेचारी
कभी जो खो गया था मैं कि जाने सो गया था मैं
मुझे फिर साथ लाई है बड़े दिन बाद बेचारी
मेरी बंजर ज़मीं पे वो बनी सरसों सुनहरी सी
भरी पूरी उग आई है बड़े दिन बाद बेचारी
कहीं दीये जलाए हैं कहीं मत्था भी टेका है
कहीं चादर चढ़ाई है बड़े दिन बाद बेचारी
कभी चाॅंदी का छल्ला इक जो मेरे नाम का ही था
उसे फिर पहन आई है बड़े दिन बाद बेचारी
है कुछ कहने की कोशिश में लबों पे रोककर बातें
अभी कुछ बुद बुदाई है बड़े दिन बाद बेचारी
कभी कोयल थी बेचारी सुरों से कट गई लेकिन
अभी कुछ गुनगुनाई है बड़े दिन बाद बेचारी
बड़े दिन बाद बेटा जो ख़ुशी से मुस्कुराया है
मेरी माँ मुस्कुराई है बड़े दिन बाद बेचारी
As you were reading Shayari by nakul kumar
our suggestion based on nakul kumar
As you were reading undefined Shayari