समझौतों पर समझौते हैं फिर भी जीना पड़ता है

  - nakul kumar

समझौतों पर समझौते हैं फिर भी जीना पड़ता है
ख़्वाहिश मार के चलते जाना चलते रहना पड़ता है

इज़्ज़त रास नहीं आती है जिनको दुनियादारी में
ऐसे ऐसे लोगों को भी आप बुलाना पड़ता है

कुछ ऐसे किरदार हैं जिनको मालूमात नहीं अपनी
जीवन के हर मोड़ पे इनको सब समझाना पड़ता है

मजबूरन कुछ लोग यहाँ पर उम्र बिताए जाते हैं
अपने झुकते काँधों पर ये बोझ उठाना पड़ता है

नींद नहीं आती है लेकिन फिर भी कल की ख़ातिर तो
अपने आप को अपने अंदर आप सुलाना पड़ता है

दुनियादारी की रस्मों को ढोने की मजबूरी में
कैसे पत्थर दिल लोगों का साथ निभाना पड़ता है

कैसे भी इक रात रुके तो घर भी रौशन हो जाए
ऐसे में फिर जुगनू को भी चाँद बुलाना पड़ता है

इश्क़ में समझो अपनी गर्दन उसके हाथ में है तो फिर
कैसे भी कुछ भी कर लो हर नाज़ उठाना पड़ता है

सारे राज़ छुपाकर रखिए अपनी ही परछाईं से
राज़ खुले तो मिट्टी को भी ताज बताना पड़ता है

अपनी जान का दुश्मन लेकिन एक ही छत के नीचे हो
जान गँवाकर भी उसको हर हाल बचाना पड़ता है

इश्क़ इबादत में ज़ाहिर है एक यही मजबूरी है
जान के दुश्मन को भी अपनी जान बताना पड़ता है

जिनकी बातें और इरादे राह में रोड़े अटकाएँ
ऐसे लोगों से फिर अपना ध्यान हटाना पड़ता है

इश्क़ में भागो घर से चाहे लेकिन इतना ध्यान रहे
प्यार जताना हाथ बँटाना साथ निभाना पड़ता है

  - nakul kumar

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