शहर सुनसान है किधर जाएं
ख़ाक हो कर कहीं बिखर जाएं
रात कितनी गुज़र गई लेकिन
इतनी हिम्मत नहीं कि घर जाएं
यूं तिरे ध्यान से लरज़ता हूं
जैसे पत्ते हवा से डर जाएं
उन उजालों की धुन में फिरता हूं
छब दिखाते ही जो गुज़र जाएं
रैन अंधेरी है और किनारा दूर
चांद निकले तो पार उतर जाएं
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