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दुनिया-जहाँ के जाम छलक जाएँ रेत पर  - Pallav Mishra

दुनिया-जहाँ के जाम छलक जाएँ रेत पर
क्या कीजिए कि होंट बहक जाएँ रेत पर

पानी की चाह भी हो समुंदर का ख़ौफ़ भी
लहरों के साथ साथ हुमक जाएँ रेत पर

गो लाख सीपियों में समुंदर की क़ैद हों
मोती वही जो फिर भी झलक जाएँ रेत पर

कासा हर इक सदफ़ का लुटा जाए अशरफ़ी
ला'ल-ओ-जवाहरात खनक जाएँ रेत पर

टुक आँख तू भी खोल कि दरिया के लब खुलें
सातों दिशा के दाँत चमक जाएँ रेत पर

छिन जाएँ रस के फ़र्श से धरती के ग़ार में
और आसमाँ की छत से टपक जाएँ रेत पर

रखिए सफ़र में सब की तन-आसानियों की ख़ैर
ऐसा न हो कि घोड़े बिदक जाएँ रेत पर

सरगोशियों की मौज कहाँ ले के जाएगी
हम कुछ अगर जुनून में बक जाएँ रेत पर

सूरज की आसमाँ पे सितारों को ढाँप ले
ज़र्रों से आफ़्ताब दमक जाएँ रेत पर

दिल की धड़कती ख़ाक से साहिल बनाइए
पानी के पाँव आज थिरक जाएँ रेत पर

- Pallav Mishra

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