फ़ज़्ल या मौला ऐसा करो
बंदे को फिर से बंदा करो
ख़ुद में कब तक करोगे जमा
वसवसे तो निकाला करो
आते परवाने दिन में नहीं
शम्अ दिन में जलाया करो
जो मिलो बाद मुद्दत के तुम
हाल दो बार पूछा करो
देखो फिर भर न जाए कहीं
ज़ख़्म पारस ये ताज़ा करो
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