ग़श्त जब भी हम लगाते थे यहाँ
साथ फिर हँसते हँसाते थे यहाँ
दौर कितना वो भी अच्छा था भला
वादे सारे जब निभाते थे यहाँ
वक़्त ने तन्हा किया वरना उसे
चूमकर हम फिर जगाते थे यहाँ
ये उदासी खा गई मेरा सुख़न
हम भी गाते गुनगुनाते थे यहाँ
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