ग़श्त जब भी हम लगाते थे यहाँ

  - Rajat Bhardwaj

ग़श्त जब भी हम लगाते थे यहाँ
साथ फिर हँसते हँसाते थे यहाँ

दौर कितना वो भी अच्छा था भला
वादे सारे जब निभाते थे यहाँ

वक़्त ने तन्हा किया वरना उसे
चूमकर हम फिर जगाते थे यहाँ

ये उदासी खा गई मेरा सुख़न
हम भी गाते गुनगुनाते थे यहाँ

  - Rajat Bhardwaj

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