आँख को बर्तन समझ लो
चाँद को कंगन समझ लो
ये न पूछो आत्म क्या है
देह का दर्पण समझ लो
देख लो खिलते चमन को
देखकर जीवन समझ लो
मैं तुम्हें क्यों चाहता हूँ
एक प्यारा-पन समझ लो
हम जहाँ मिलते थे प्रियवर
अब उसे मधुबन समझ लो
रात मेरी क्या लगेगी
मौसमी दुश्मन समझ लो
रातरानी क्या लगेगी
मेरी इक दुल्हन समझ लो
फूल क्या है ख़ार क्या है
एक उर दो तन समझ लो
अब कभी मिलना न होगा
आख़िरी दर्शन समझ लो
चाहे कह लो कल्पना है
चाहे इसको फ़न समझ लो
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