बंदा-परवर नज़र नहीं आता
कोई रहबर नज़र नहीं आता
जिस बशर की तलाश है मुझको
वो कहीं पर नज़र नहीं आता
आसमाँ से ज़मीन दिखती है
पर मेरा घर नज़र नहीं आता
जो हवा का ग़ुरूर तोड़ सके
ऐसा पत्थर नज़र नहीं आता
चाँदनी रात है मगर फिर भी
चाँद छत पर नज़र नहीं आता
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