इंतिहा-ए-'इश्क़ भी सर से उतर जाएगा इक दिन
वो तिरा जिस रोज़ जब हद से गुज़र जाएगा इक दिन
दिल भला ये कब किसी का एक पर जाके रुका है
आज मुझसे भर गया तुझसे भी भर जाएगा इक दिन
जिस तरह की ग़ज़लों का माहौल रहता है तिरे घर
देखना इसका तू बच्चों पर असर जाएगा इक दिन
ये बदन ये ज़ख़्म ये दुख ये ख़ुशी ग़म और ये दिल
एक झटका मौत का ये सब बिखर जाएगा इक दिन
बस इसी उम्मीद पर जलने दिया सब ने मिरा घर
बच गया तू काफ़ी है घर फिर सँवर जाएगा इक दिन
जिस तरह की कैफ़ियत में वो ग़ज़ल लिखने लगा है
डर लगा ही रहता है वो लड़का मर जाएगा इक दिन
क्या है इन'आम-ए-वफ़ा तुझको नहीं मालूम सागर
खा गया है दिल , तुझे भी ख़त्म कर जाएगा इक दिन
As you were reading Shayari by Sagar Sahab Badayuni
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