ख़ामोश ज़बाँ को भी सहारा तो मिलेगा
मुफ़लिस के जनाज़े को भी काँधा तो मिलेगा
कश्ती को समंदर में किनारा तो मिलेगा
अंधे को अँधेरे में भी रस्ता तो मिलेगा
साँसों को रवानी का तक़ाज़ा तो मिलेगा
महफ़ूज़ हूँ मैं कोई इशारा तो मिलेगा
साँपों को सपेरों का पिटारा तो मिलेगा
दुनिया को भी दुनिया सा ही चेहरा तो मिलेगा
बस्ती में चले है तो बसेरा तो मिलेगा
बेघर को यहाँ कोई ठिकाना तो मिलेगा
तन्हाई की महफ़िल को सहारा तो मिलेगा
इस चाँद से चेहरे को दिवाना तो मिलेगा
घूँघट के ही नीचे से इशारा तो मिलेगा
हाथों से वो रोटी का निवाला तो मिलेगा
मिलती थी रक़ीबों से रक़ीबों का है बच्चा
बच्चा है रक़ीबों का ये ताना तो मिलेगा
सलमान भी इक शख्स की आँखों पे मिटेगा
मंज़िल को मुसाफ़िर का ठिकाना तो मिलेगा
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