कर रहे हैं शोर इतना आप जिसके नाम का
जानते हैं सब वो है इंसान कितने काम का
आदमी का ख़ून जिसके लग चुका है मुँह मियाँ
ज़ाइक़ा उसको पता क्या उल्फ़तों के जाम का
तर-बतर हैं हैडलाइन ख़ून से अख़बार की
अब नहीं छपता है कॉलम इश्क़ के पैग़ाम का
क्या वो जाने आँख से कितना टपकता है लहू
शायरी जिसको लगे है काम है आराम का
कह रहे हैं आप चढ़ता शम्स जिसको अब यहाँ
वो हक़ीक़त में सितारा है उतरती शाम का
ख़ौफ़ क्या है साथ में हैं जब खड़े दैर-ओ-हरम
क़त्ल कीजे नाम ले अल्लाह कहीं पर राम का
'सत्य' तुमने आइना उसको दिखाया है अगर
फूटना है ठीकरा तुम पर हर इक इल्ज़ाम का
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