मेरी सांसें अब जो हिचकियों में कहीं अटक रहीं हैं
कि निगाहें उसे देखने को अब दर दर भटक रहीं हैं
उसकी इक तस्वीर है जो मुझे चैन-ओ-सूकूं देती है
उसके जुल्फों की लटें जिसमें चेहरे पर लटक रहीं हैं
जाते जाते वो मुझसे इस कदर लिपटी थी इक रोज़
कि उसकी खुशबू मेरे बदन से आज भी महक रही है
कभी जो लगती थी प्यारी हद से ज्यादा उसे
मेरी वो तमाम बातें अब उसको खटक रहीं हैं
गर वो खुश है मुझसे दूर, उसकी खुशियां सिर आंखों पर
मगर ये धड़कनें हैं जो बस उसके नाम से ही धड़क रहीं हैं
सुना है हिचकियों में याद की तासीर होती है "निहार"
मिलन की जो बेचैनियां हैं, वो ग़ज़लों में झलक रहीं हैं
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