मुझे पलकों पर मत बिठाओ नज़र से अब उतर जाने दो
मैं खुद ही समेट लूंगा ख़ुद को मुझे टूट कर बिखर जाने दो
मंज़िल के ख्वाब देखता हुआ रास्ता भटक गया हूं कहीं
मैं कल फिर सफ़र पर निकलूंगा, अब मुझे घर जाने दो
वादा किया था उसने मिलेगी अब दुल्हन के पोशाक में
बातें मुलाकातें भी होंगी पहले उसे सज संवर जाने दो
सुना है अब उसके दिल में किसी और का आशियां है
खैर कोई बात नहीं मुझे इस हादसे से भी गुज़र जाने दो
उठ रहीं हैं बेचैनियों की लहरें उसकी रुख्सती से "निहार"
उससे इक मुलाकात करने मुझे अब उसके शहर जाने दो
मुझे शिकायत नहीं कुछ किसी से बस इक ख्वाइश ज़िंदा है
उसे आंख भर के देख लूं इक बार फिर चाहे मुझे मर जाने दो
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