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मुझे पलकों पर मत बिठाओ नज़र से अब उतर जाने दो - Shashank Tripathi

मुझे पलकों पर मत बिठाओ नज़र से अब उतर जाने दो
मैं खुद ही समेट लूंगा ख़ुद को मुझे टूट कर बिखर जाने दो

मंज़िल के ख्वाब देखता हुआ रास्ता भटक गया हूं कहीं
मैं कल फिर सफ़र पर निकलूंगा, अब मुझे घर जाने दो

वादा किया था उसने मिलेगी अब दुल्हन के पोशाक में
बातें मुलाकातें भी होंगी पहले उसे सज संवर जाने दो

सुना है अब उसके दिल में किसी और का आशियां है
खैर कोई बात नहीं मुझे इस हादसे से भी गुज़र जाने दो

उठ रहीं हैं बेचैनियों की लहरें उसकी रुख्सती से "निहार"
उससे इक मुलाकात करने मुझे अब उसके शहर जाने दो

मुझे शिकायत नहीं कुछ किसी से बस इक ख्वाइश ज़िंदा है
उसे आंख भर के देख लूं इक बार फिर चाहे मुझे मर जाने दो

- Shashank Tripathi

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