मर गए हम देख उसको यार दर पर
हैं खड़े ले कर सभी हथियार दर पर
बंदिशों में शख्स जीए कब तलक ही
अंदरूँ है दफ़्न सारे वार दर पर
फ़र्क क्या जो लोग उसमें डूब जाएँ
रोज़ मिलती लाश इक दो चार दर पर
बंद कर दे याद करना हम अगर तो
छोड़ देता गुफ़्तगू से ग़ार दर पर
सब गिरेंगे हुस्न की जो बरतरी है
नाज़नीं को कर दिया तैयार दर पर
दिख रही है अक्स मे वह महजबीं तो
क्या बताएँ किस क़दर है ख़्वार दर पर
हम बहाएँ अश्क, अपनी ख़ुदकुशी पे
तुम करो तो हो भला इज़हार दर पर
ज़िन्दगी भी आफ़ियत से दूर गुज़री
शिव कभी ना कर सके इन्कार दर पर
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