कुछ ज़रूरी बात करना चाहता हूँ
इसलिए नज़दीक तेरे आ गया हूँ
ज़िंदगी हो दोस्ती हो या मोहब्बत
ये वो तोहफ़े हैं मैं जिन को खो चुका हूँ
वो भी कार-ए-ज़िंदगी में खो गया है
मैं भी अब मश्क़-ए-सुख़न में मुब्तिला हूँ
इस दफ़ा शायद ही मेरी नींद टूटे
मौत की आग़ोश में मैं सो रहा हूँ
ज़िंदगी तुझ को नहीं लगता मैं अब तक
कुछ ज़ियादा आज़माया जा चुका हूँ
काश तू वैसा ही हो कल तक था जैसा
काश ये सब सच नहीं हो जो सुना हूँ
आप मुझ से मुँह नहीं अब फेरिएगा
मैं यहाँ बस आप ही को जानता हूँ
अब मुसीबत में कोई आए न आए
मैं अकेला लड़ रहा था लड़ रहा हूँ
कूज़ा-गर भी सोचता है क्या बनाऊँ
जाने किस मिट्टी का 'सोहिल' मैं बना हूँ
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