इस तरह से तर्जुमानी कर गया
मेरे अश्कों को वो पानी कर गया
उस ने चेहरे से हटा डाला नक़ाब
और मेरी ग़ज़लें पुरानी कर गया
रख गया वो अपने कपड़े सूखने
धूप भी कितनी सुहानी कर गया
भूल जाने की क़सम देना तेरा
याद आने की निशानी कर गया
दो घड़ी को पास आया था कोई
दिल पे बरसों हुक्मरानी कर गया
जिस पे मैं ईमान ले आया 'असद'
मुझ से वो ही बे-ईमानी कर गया
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Subhan Asad
our suggestion based on Subhan Asad
As you were reading Aaina Shayari