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वो जो सूरत थी साथ साथ कभी सुर्ख़ महके गुलाब की सूरत  - Subhan Asad

वो जो सूरत थी साथ साथ कभी सुर्ख़ महके गुलाब की सूरत
उस की यादें उतरती रहती हैं ज़ेहन-ओ-दिल पे अज़ाब की सूरत

ये रवय्या सही नहीं होता यूँ हमें कश्मकश में मत डालो
या हमें सच की तरह अपना लो या भुला भी दो ख़्वाब की सूरत

उस ने अन-देखा अन-सुना कर के बे-तअल्लुक़ किया है तो अब हम
उस की तस्वीर से निकालेंगे आँसुओं के हिसाब की सूरत

अपनी झूटी अना की बातों में आ के उस को सुला तो बैठे हैं
अब हैं सहराओं के मुसाफ़िर हम और वो सूरत सराब की सूरत

- Subhan Asad

Tasweer Shayari

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