मछलियों को दाना डालो आब में ये जाल क्यूँ है
शेर तो जोकर नहीं सर्कस में इस्तेमाल क्यूँ है
प्रेम की आतिश में जलते दिल को दुख का घर बनाते
डूबते हो शोक में गर तो ग़ज़ल ख़ुशहाल क्यूँ है
इक अधूरी दास्ताँ का हश्ल ऐसा ओ ग़ज़ल-गो
कुछ दिनों के रब्त का ये दर्द सालों साल क्यूँ है
इश्क़ के सागर से कह दो क़ल्ब पे मरहम लगाएँ
लहरें चारागर हैं तो फिर रेत यूँ पामाल क्यूँ है
रीति के बेड़ी में घुटती ग़ैर की ज़द में दुल्हनिया
पूछती है इश्क़ से ये ज़ात ख़स्ताहाल क्यूँ है
है दिल-ए-सद-चाक फिर भी इश्क़ कीजे ज़ख़्म लीजे
नाज़ ढोओ इश्क़बाज़ों पहले से बेहाल क्यूँ है
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