वक़्त के दुख में मिरी आँखों से छलके आँसू
हो गए अश्क मिरे ऐसे अजल के आँसू
इतना ग़म था कि मिरी ओर से रोया अंबर
हो गए अब्र तिरे हिज्र में जल के आँसू
वो कोई लाल सियाही नहीं है ख़त में सनम
अबकी आँखों से गिरे रंग बदल के आँसू
हर घड़ी सफ़्हे के आरिज़ पे नमी रहती है
यू़ँ तिरी याद में गिरते हैं ग़ज़ल के आँसू
दिल ने फिर मारा तमाचा मिरी मजबूरी को
फिर तिरा ज़िक्र चला आँख से छलके आँसू
फिर ख़याल आया है तुमसे है बिछड़ना इक दिन
फिर चले आए हैं आँखों में टहल के आँसू
अब की बारिश में कोई तुझसे भी तन्हा था शम्स
रोके रुकते नहीं थे अब की फ़सल के आँसू
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