जो दिल में ख़ुदा तो कभी दिल-रुबा है
बताओ वो दिल है कि ख़ाना-ख़ुदा है
है तेरी तजल्ली यहाँ भी वहाँ भी
सो क़ामत दराज़ी तेरी जा-बजा है
है जिसमें सदाक़त अदालत शुजाअत
ये सारा जहाँ फिर उसी की रिदा है
ये आईना-ख़ाना है तमसील-ए-दुनिया
सो हर अक्स-ए-आईना ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है
मुझे तुम भी अब तो नहीं सुन सकोगे
कि मेरी सदा भी ख़ामोशी सदा है
जिगर किरची–किरची है अब जान अटकी
मोहब्बत है ख़ूनी मोहब्बत बला है
ये पगड़ी ने जो की है ख़ून-ए-मुहब्बत
तेरी अब ख़ता है न मेरी ख़ता है
मुझे याद घर की है आती कि अब तो
जो रस्ता दिखा दे वो बाद-ए-सबा है
मोहब्बत जो तुमको हुई है तो फिर अब
ये बिन मौत मरना तुम्हारी सज़ा है
दिया क्या है तुमने सिवा ग़म के "हैदर"
ये दिल ग़म का जो आशियाना बना है
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