मैं उसको भुलाता रहा धीरे धीरे
कोई घर में आता रहा धीरे धीरे
किसी की नहीं आस मुझको कहीं भी
मैं ख़ुद को हँसाता रहा धीरे धीरे
तू रौनक़ है इस दुनिया की मेरा क्या है
मैं दुनिया से जाता रहा धीरे धीरे
किसी और के साथ वो कैसे ख़ुश है
यही ग़म मनाता रहा धीरे धीरे
वो आएगी ख़्वाबों में अब सब्र तो रख
ये कह कर सुलाता रहा धीरे धीरे
मुझे इश्क़ अपना वो दे क्यूँ भला अब
उसे और भाता रहा धीरे धीरे
मुझे लाश अपनी ले जानी थी ख़ुद ही
सो ख़ुद ही उठाता रहा धीरे धीरे
तसव्वुर से तेरे मिरा पीछा छूटे
मैं ख़ुद को पिलाता रहा धीरे धीरे
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