मुझे एक उसने रुलाया बहुत
वो इक रिश्ता मैंने निभाया बहुत
ये दुख मैंने तक़सीम करने नहीं
मेरा उसने ये दिल दुखाया बहुत
मेरी बात उसने नहीं मानी पर
उसे यार मैंने मनाया बहुत
उसे भूलूँ ये हौसला नइँ हुआ
वो इक मेरे ख़्वाबों में आया बहुत
मेरे हाथ में कुछ नहीं है सनम
मगर ज़िंदगी में कमाया बहुत
वो इक बार भी आया नइँ मेरे घर
वो घर अपना मैंने सजाया बहुत
ये दिल अब लगाना नहीं है कहीं
इसी दुनिया में धोखा खाया बहुत
वो दिन याद आते हैं मुझको बहुत
उसे गोद में सो उठाया बहुत
मेरी बात उसने नहीं मानी है
मोहब्बत है तुमसे बताया बहुत
शिक़ायत करूँ भी तो क्या मैं करूँ
मगर ज़हर उसने पिलाया बहुत
मैं जो धीमे से सह गया सारा दुख
मेरे इश्क़ पर ज़ुल्म ढाया बहुत
वही जाने वो क्यों नहीं आई है
अगरचे उसे घर बुलाया बहुत
न जाने मुझे याद वो क्यूँ रहा
उसे मैंने हैदर भुलाया बहुत
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