कैसे मुम्किन है के हर शख़्स का प्यारा होना
दिन में तारों को मयस्सर न हो तारा होना
हम ही नादान थे जो तुझपे फ़िदा थे वरना
चाहता कोई था शिद्दत से हमारा होना
अब दुआ है के नहीं तुझसे कभी मिलना हो
तुझसे मिलना के किसी दर्द का मारा होना
दौर-ए-हिज्राँ में ये अहबाब हैं ऐसे जैसे
बीच दरिया में भी मौजूद किनारा होना
सहल कितना है गिराना किसी रहरू को याँ
कितना दुशवार है गिरतों का सहारा होना
लौट आए हो लिए ज़ख्म ज़माने का पर
हमसे होगा नहीं अब ज़ख्म का चारा होना
अब गिरफ़्तार हैं हम अपनी अना में वासिफ़
हमको मंज़ूर नहीं इश्क़ दुबारा होना
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