कब ग़ाज़ियों को रास्ता हमवार चाहिए

  - Wasif Iqbal

कब ग़ाज़ियों को रास्ता हमवार चाहिए
हमको तो राह-ए-इश्क़ भी पुरख़ार चाहिए

मुल्हिद के इक़्तिदार में जीने को हाथ में
रखना क़लम भी साथ में तलवार चाहिए

कहने को कह दिए हो ज़माने में अम्न पर
सबको यहाँ पे नफ़रती बाज़ार चाहिए

ग़फ़लत में है अभी भी जहालत में चूर है
होना जिसे ये दौर में बेदार चाहिए

रहने का इक ठिकाना हो गुज़रे जहाँ पे शब
छत चाहिए है अब मुझे घर-बार चाहिए

'वासिफ़' ग़िज़ा की तरह ही दरकार है मुझे
दिल को धड़कने के लिए आज़ार चाहिए

  - Wasif Iqbal

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