उसे बस थोड़ी सी फ़ुर्सत रही होती
मेरे दिल को भी कुछ हसरत रही होती
किसी का साथ देना चाहा पल भर का
उसे तो एक से क़ुर्बत रही होती
किसी से वादा जो करना, निभाना भी
मेरे हुजरे यही कुदरत रही होती
मुसाफ़िर छू गया उसको बिना डर के
ख़ुदाया मुझ पे ये बरकत रही होती
अभी भी बोल सकती है वो अन्वेषी
बुलाने भर की तो हिम्मत रही होती
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