यहाँ हमसे नही उठती ज़रा सी शाम की पीड़ा
उन्हें पूछो उठाते हैं जो आठो याम की पीड़ा
सनातन धर्म की पीड़ा या हो घनश्याम की पीड़ा
नहीं समझी किसी ने भी हमारे राम की पीड़ा
प्रतीक्षा में हुआ पत्थर जहाँ की आँखों का पानी
नहीं समझा कोई लेकिन अयोध्या धाम की पीड़ा
जिसे रोटी मिले हर दिन कोई भी काम करने से
उसे रुकने नहीं देती कहीं भी काम की पीड़ा
जिसे खाना मधुर लगता उसे खाने से मतलब है
कहाँ समझा कोई इंसाँ किसी भी आम की पीड़ा
सदा आराम करके भी ये जीवन कट नहीं सकता
कहाँ झेली है हम सब ने कभी आराम की पीड़ा
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