हाँ यही सच है कि दिल मैंने लगाया था कभी
आस्तीं में इक सँपोले को बसाया था कभी
वो जो रो रो के दिखाता है दिली ज़ख़्मों को अब
मैं ने उससे भी कई ज़ख़्मों को पाया था कभी
उसकी गाली पे मुझे ग़म भी भला क्यों कर हो यूँ
उसने इन क़दमों में सर भी तो झुकाया था कभी
टीस होती है उसे होने दो मुझको क्या पड़ा
दर्द से मैंने भी दिल अपना दबाया था कभी
जंग है उपमन्यु की जारी मगर यह ख़ुद से है
मुझ ज़ियाले को वो यूँ ज़िद पर जो लाया था कभी
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