Ahmad Hamesh

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@ahmad-hamesh

Ahmad Hamesh shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Hamesh's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कभी तुम ने कुछ तो दिया नहीं कभी हम ने कुछ तो लिया नहीं
हमें ज़िंदगी से हो बहस क्या कोई वाक़िआ' तो हुआ नहीं

मगर ऐसी कोई ख़लिश भी थी जो फ़क़त हमारा नसीब थी
कि जो रोग हम ने लगा लिया किसी और को तो लगा नहीं

ज़रा देखना कि वो कौन है पस-ए-रम्ज़-ए-वहशत-ए-आशिक़ी
भला किस ने हम को शिकस्त दी कभी पहले ऐसा हुआ नहीं

जिसे पास आना था आ गया और नफ़स के तार भी जुड़ गए
कि तलब की थीं यही मंज़िलें कोई फ़ासला तो रहा नहीं

बड़ी वुसअतें हैं ज़मीन पर हमें और चाहिए क्या मगर
वो जो हुस्न उस की नज़र में है कोई उस से बढ़ कर मिला नहीं

वो जो मिल चुकी हैं अज़िय्यतें चलो मान लें कि बहुत हुआ
मगर अब मिला है जो हौसला किसी और को तो मिला नहीं
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Ahmad Hamesh
जब से मैं ख़ुद को खो रहा हूँ
करवट बदल के सो रहा हूँ

ये जागना और सोना क्या है
आँखों में जहाँ समो रहा हूँ

दुनिया से उलझ के सर पर शायद
अपनी ही बला को ढो रहा हूँ

ये लाग और लगाव क्या है
अपना वजूद ही डुबो रहा हूँ

अब तक जो ज़िंदगी है गुज़री
काँटे नफ़स में बो रहा हूँ

है कुछ तो अपनी पर्दा-दारी
न जागता हूँ न सो रहा हूँ

इतना है खोट मेरे मन में
पानी में दूध बिलो रहा हूँ

ऐ दिल-फ़िगार बे-सबात हस्ती
तेरी ही जान को रो रहा हूँ

जितनी है दूर मौत मुझ से
इतना ही क़रीब हो रहा हूँ

शीराज़ा यूँ बिखर रहा है
ख़ुद में तबाह हो रहा हूँ

किस रास्ते पर जा रही है दुनिया
ये देख के ही तो रो रहा हूँ

जाने 'हमेश' ख़ुद को कब से
बे-वज्ह लहू में डुबो रहा हूँ
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Ahmad Hamesh
किस का शोअ'ला जल रहा है शो'लगी से मावरा
कौन रौशन है भला इस रौशनी से मावरा

जीते जी तो कुछ नहीं देखा नज़र से हाँ मगर
हैरतें ढूँडा किए इस हैरती से मावरा

कौन सा आलम है मालिक तेरे आलम में निहाँ
कौन सज्दे में छुपा है बंदगी से मावरा

कोई तो बतलाएगा आगे कहाँ मुड़ती है राह
कोई तो होगी ज़मीं उस मल्गजी से मावरा

बात जीने की अदा तक ख़ूबसूरत है मगर
ज़िंदगी कुछ और है इस ज़िंदगी से मावरा

ख़ाक-बस्ता फिर रहा है कौन सी बस्ती में दिल
कौन आख़िर ख़स्ता-जाँ है ख़स्तगी से मावरा

इक नगर तरसा हुआ है और सहरा है तवील
और इक नद्दी है कोई तिश्नगी से मावरा

कब से ख़ाली हाथ है याँ एक ख़िल्क़त इश्क़ की
हम भी हो जाएँगे एक दिन बेबसी से मावरा

इन फ़रावाँ ने'मतों और बरकतों के बावजूद
कोई मुफ़्लिस चल दिया है मुफ़्लिसी से मावरा

अपनी दुनिया में अगर फैली है तारीकी तो क्या
दिन कहीं निकला तो होगा तीरगी से मावरा
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Ahmad Hamesh