“मेरा गुनाह”
तूफ़ान ने भी मुझ को ही इल्ज़ाम दिया
कमज़ोर दरख़्त था इसलिए गिर गया
अभी तो मैं पूरा सूखा भी नहीं था
कि लोगों ने शाख़ों को काट लिया
जिन्हें राह में मैंने छाया दी और फल दिए
बारिश से बचाया और भीगने नहीं दिया
वो घर उठा ले गए मुझे अर्थी की तरह
उन्होंने भी मुझ पर कोई तरस नहीं किया
शाम को अँगीठी में ठूँसा और आग दिखाई
ख़ुद को ठंड से बचाने को मुझे जला दिया
फिर भी उन की नज़रों में मैंने गुनाह किया
कि गिरने के बाद कोई फल नहीं दिया
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