"इश्क़ की आग"
चलो फिर से आशिक़ी की राह पर चला जाए
अंजाम जो भी हो पर अंदाज़ क्यूँ बदला जाए
बर्फ़-सी दिल में जम गई है शब-ए-तन्हाई में
तो फिर वस्ल-ए-यार की गर्मी में पिघला जाए
ख़बर है फ़लक की बिजली से मर गया इंसाँ
ख़ाक-ए-ज़ुल्मात-रंग से कब कौन चला जाए
तब ये जान जाना कि मौत-बर-हक़ है अगर
क्यूॅं न इश्क़ की आग में जल कर देखा जाए
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