इश्क़ में अब उठ रही तलवार मेरे नाम से
तुम सभी करते थे पहला वार मेरे नाम से
इश्क़ज़ादे ये नतीजा ख़ुद ही आकर देख लें
जीत होती है तो कुछ की हार मेरे नाम से
मैं तिरे तो नाम तक को सीने पर लिख लूँ मगर
छोड़ के आएगा तू घर बार मेरे नाम से
तेरे महलों में कभी जाता नहीं तो क्या हुआ
काँपते हैं आज तक दरबार मेरे नाम
दिल समुंदर बन चुका था रेत का फिर भी करीं
इस तरफ़ की कश्तियाँ उस पार मेरे नाम से
जब से मैंने खोल डाले हैं ज़खीरे सोग के
हर तरफ़ खुलने लगे बाज़ार मेरे नाम से
रौशनी से क्यूँ फ़रोज़ाँ ज़ा रहा ये शहर को
हर गली में क्यूँ जलें अशआर मेरे नाम से
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