कर चुके हैं ठीक हम अपना बहुत बरताव तो
आप भी कुछ आचरण में कीजिए बदलाव तो
किस तरह तुम को दिखाएँ आत्मा की पीर हम
ये जो इस तन पर लगे हैं कुछ नहीं हैं घाव तो
मन की पीड़ा को छुपाना है बहुत ज़्यादा कठिन
हँसते चेहरे पर उतर आते हैं मन के भाव तो
बैर ऐसे कम नहीं होगा हमारे बीच का
खाइयाँ चौड़ी करेगा सिर्फ़ ये अलगाव तो
खीज, कुंठा, द्वेष, जैसे रोग हरने के लिए
प्रेम का काफ़ी है मन के खेत में छिड़काव तो
प्रेम के दो बोल कोई बोल देगा जब हमें
देखना बिक जाएँगे हम उस घड़ी बे-भाव तो
Read Full