kumar rahul

kumar rahul

@kumarrahulofficial

kumar rahul shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in kumar rahul's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

5

Likes

0

Shayari
Audios
  • Nazm
तुम्हारे पाँव
तुम्हारे पाँव के तले है एक आसमान जानाँ
तुम्हारे पाँव में है मेरी मोहब्बत का बयान जानाँ
है इनमें एक सुकूत, एक इत्मीनान कि कहते हैं
तुम्हारे पाँव में हैं दरवेशों के दो-जहान जानाँ

तुम्हारे पाँव में खुलते हैं बशर के ताले यानी
तुम्हारे पाँव में हैं आब-ए-ज़मज़म के प्याले यानी
है इनमें एक उम्र की आँखें और कुछ इस तरह
तुम्हारे पाँव में घुलते हैं ग़ैब के उजाले यानी

तुम्हारे पाँव में बैठे हैं पयम्बर-ए-अज़ीम देखो
तुम्हारे पाँव में बैठे हैं करीम-ओ-रहीम देखो
किस तरह पाते दुनिया के दर्द का दरमाँ हम
तुम्हारे पाँव में बैठे हैं ज़ाहिद-ओ-हक़ीम देखो

तुम्हारे पाँव में हिना की ख़ुशबू ठहरे
तुम्हारे पाँव में सिकंदर-ओ-अरस्तू ठहरे
हम ये सोचते हैं और बारहा सोचते हैं
तुम्हारे पाँव में न जाने कितने पहलू ठहरे

तुम्हारे पाँव में सुब्ह-ए-बहाराँ के फूल खिलते हैं
तुम्हारे पाँव में यानी कि हमको रसूल मिलते हैं
हम कि मिलते हैं जब भी अमीर-ए-शहर से जानाँ
तुम्हारे पाँव में बैठे हुए बा-उसूल मिलते हैं

तुम्हारे पाँव में हैं ख़राब हालों के घर अब भी
तुम्हारे पाँव में हैं शायरों के मुक़द्दर अब भी
हम इस ख़याल में हैं और कुछ ग़लत तो नहीं
तुम्हारे पाँव हैं ताजमहल से हँसी-तर अब भी
Read Full
kumar rahul
0 Likes
कहाँ हो
न क़ासिद न नामा न पैग़ाम, कहाँ हो
कर के बैठे हैं ख़ुतूत-ए-इंतज़ाम, कहाँ हो

कहाँ हो कि अरसा हुआ
ख़ैर-ओ-आफ़ियत के ख़त आए
तुम न सही तुम्हारी ख़ुशबू लिए
क़ासिदों के मातहत आये

कहाँ हो कि बे-रफ़ू बे-दवा
इक चाक सा सीना लिए
ज़ीना-ज़ीना उतरती है शब
साग़र-ओ-मीना लिए

कहाँ हो कि उम्रें गुज़रीं, ग़म गुज़रे
ज़िंदगी होती रही ज़ाया यूँही
बर्फ़ की तरह सफ़ेद एक जिस्म
रूहें छोड़ चली साया यूँही

कहाँ हो कि तन्हाई गाती है
शहना-ए-वक़्त पे नग़्मा कोई
पढ़ती रहती हैं बेचैनियाँ
दिल के दरूं कलमा कोई

कहाँ हो कि फ़िक्र के सीने में
एक ही चेहरा एक ही ख़याल
मुसलसल रखती है ज़िंदगी
सवाल के बरअक्स कितने सवाल

कहाँ हो कि मोरिद-ए-तक़सीर
हम रहें तो रहें कब तलक
तय नहीं हश्र का रोज़ कहो
हम जियें तो जियें कब तलक

कहाँ हो कि नौ-दमीदा एक ख़्वाब
लेती हैं अंगड़ाईयाँ क्या करें
दिल में उठती हैं रह-रह के
आवाज़नुमा तन्हाईयाँ क्या करें
Read Full
kumar rahul
0 Likes