मुहब्बत के नशे में छन-छनन करते हुए कंगन
तेरे हाथों में आकर और भी महँगे हुए कंगन
बड़ी हसरत से उस के बाप ने कंगन ख़रीदे थे
सुहागन तक रही है दूर से बेचे हुए कंगन
बिना मर्ज़ी के ये ज़ेवर फ़क़त बंधन बराबर हैं
नहीं जँचते किसी के हाथ में बाँधे हुए कंगन
भले कुछ कर नहीं सकता मगर ये दुख तो है मुझ को
पराए हाथ में जाकर बहुत मैले हुए कंगन
वो अच्छे से समझती थी मेरे घर बार की हालत
सो उस के होंठ कन पे रुक गए कहते हुए कंगन
किसी ने तैश में आकर तेरे हाथों को झटका था
मेरे पाँवों में चुभते हैं तेरे टूटे हुए कंगन
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