हंसी छुपा भी गया और नज़र मिला भी गया
ये इक झलक का तमाशा जिगर जला भी गया
उठा तो जा भी चुका था अजीब मेहमांथा
सदाएंदे के मुझे नींद से जगा भी गया
ग़ज़ब हुआ जो अंधेरे में जल उठी बिजली
बदन किसी का तिलिस्मात कुछ दिखा भी गया
हवा थी गहरी घटा थी हिना की ख़ुशबू थी
ये एक रात का क़िस्सा लहू रुला भी गया
चलो 'मुनीर' चलें अब यहांरहें भी तो क्या
वो संग-दिल तो यहां से कहीं चला भी गया
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