Nabeel Ahmad Nabeel

Nabeel Ahmad Nabeel

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Nabeel Ahmad Nabeel shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Nabeel Ahmad Nabeel's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
चूर थे लोग जो संगीनी-ए-हिजरत से यहाँ
साँस भी आता नहीं उन को सुहुलत से यहाँ

वो किसी फूल किसी ग़ुंचे के हक़दार नहीं
दश्त गुलज़ार बनाते हैं जो मेहनत से यहाँ

चोग़ा पहनाया गया झूट का सच्चाई को
और मआ'नी लिए नफ़रत के मोहब्बत से यहाँ

हम ने बुनियाद रखी ज़हर-बुझे सज्दों की
तेग़ का काम लिया हम ने इबादत से यहाँ

हाथ हालात ने डाले हैं गरेबानों में
ज़िंदगी कैसे गुज़ारे कोई इज़्ज़त से यहाँ

पेट पे बाँधा गया सब्र का भारी पत्थर
और गुज़ारा गया हर लम्हा मशक़्क़त से यहाँ

साहब-ए-मिम्बर-ओ-मेहराब भी क्या भूका है
पेट की आग बुझाता है शरीअ'त से यहाँ

साँस चुभता रहा काँटे की तरह दिल में 'नबील'
जिस्म ढलते रहे छालों में अज़िय्यत से यहाँ
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Nabeel Ahmad Nabeel
आँखों के इज़्तिराब से ऐसे झड़े हैं ख़्वाब
शब के शजर पे नींद की सूरत पड़े हैं ख़्वाब

आती नहीं है नींद मुझे इस लिए भी दोस्त
आँखों की पुतलियों में हज़ारों झड़े हैं ख़्वाब

निकला न फिर भी कोई नतीजा बहार का
ता'बीर से अगरचे बहुत ही लड़े हैं ख़्वाब

जब भी चला हूँ नींद के रस्ते पे यूँ लगा
हाथों को जोड़ कर मिरे आगे खड़े हैं ख़्वाब

दिल से ग़मों का इस लिए छाला न जा सका
काँटों की मिस्ल चश्म-ए-तलब में अड़े हैं ख़्वाब

तुझ को कहाँ ख़बर है कि कैसे हैं रतजगे
तुझ को कहाँ ख़बर है कि कितने कड़े हैं ख़्वाब

इस बार भी यहाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक की तरह
आँखों में जिस क़दर थे वो सारे सड़े हैं ख़्वाब

आया नहीं 'नबील' पलट के वो एक शख़्स
रंजीदा इस लिए भी हमारे बड़े हैं ख़्वाब
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Nabeel Ahmad Nabeel
हर बदन को अब यहाँ ऐसा गहन लगने लगा
जिस को देखो अब वही बे-पैरहन लगने लगा

जब से ढाला है सितारों में निगाह-ए-शौक़ को
चाँद से बढ़ कर तुम्हारा बाँकपन लगने लगा

मेरी जानिब प्यार से देखे न कोई इक नज़र
हल्क़ा-ए-अहबाब तेरी अंजुमन लगने लगा

ज़िंदा लाशों की तरह लगने लगी इंसानियत
पैरहन अब आदमियत का कफ़न लगने लगा

मैं ने रक्खा है हमेशा अपनी धरती का भरम
इस लिए भी मुझ से वो चर्ख़-ए-कुहन लगने लगा

मैं ने रखा था जहाँ पर फूल तेरे नाम का
इस ज़मीं का उतना हिस्सा अब चमन लगने लगा

जब से सच्चाई के रस्ते को किया है मुंतख़ब
नोक-ए-ख़ंजर से छिदा अपना बदन लगने लगा

रफ़्ता रफ़्ता नोक-ए-ख़ामा पर हवस छाने लगी
धीरे धीरे राएगाँ कार-ए-सुख़न लगने लगा

ये जो बाँधा है गरेबाँ से जुनूँ के हाथ को
अहल-ए-दानिश को मगर दीवाना-पन लगने लगा

जिस गुलिस्ताँ पर लहू छिड़का था हम ने ऐ 'नबील'
डाली डाली आज वो इक दश्त-ओ-बन लगने लगा
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Nabeel Ahmad Nabeel
देख कर उठता हुआ शौक़ का सर या'नी तू
काट डालेगा मिरा दस्त-ए-हुनर या'नी तो

मेरी तक़दीर में लिक्खेगा अंधेरों का सुकूत
रौंद डालेगा मिरी ताज़ा सहर या'नी तो

बस यही है मिरे दामान-ए-सफ़र में अब तो
मेरी मंज़िल है मिरी राहगुज़र या'नी तू

जब भी आएगा सवा नेज़े पे ख़ुर्शीद-ए-ग़ज़ब
फूलने-फलने नहीं देगा शजर या'नी तू

मुझ को मा'लूम है ऐ दोस्त उठा लेता है
मेरे हिस्से के सभी बर्ग-ओ-समर या'नी तू

तेरे तेवर ये बताते हैं ऐ जाने वाले
लौट के अब न कभी आएगा घर या'नी तू

ये गुज़ारिश है मिरी तुझ से गुज़ारिश मेरी
मेरी नस नस में उतर तू ही उतर या'नी तू

ख़ुश्बू-ए-गुल की तरह रंग-ए-शफ़क़ की सूरत
दिल के आँगन में बिखर और बिखर या'नी तू

निखरा निखरा सा है उम्मीद का मौसम यूँ भी
शाख़-ए-उम्मीद पे कुछ और सँवर और सँवर या'नी तू

राह-ए-उल्फ़त में मुझे तेरी क़सम जान-ए-'नबील'
है मिरे पेश-ए-नज़र पेश-ए-नज़र या'नी तू
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Nabeel Ahmad Nabeel
आई है ऐसे ग़म में रवानी परत परत
बहने लगा है आँख से पानी परत परत

बाँधा है जब से तेरे तसव्वुर को शेर में
शे'रों के खुल रहे हैं मआ'नी परत परत

छाया रहा हो जैसे बुढ़ापा नफ़स नफ़स
गुज़री है ऐसे अपनी जवानी परत परत

दिल के वरक़ वरक़ पे तिरा नाम सब्त है
इक तू ही धड़कनों में है जानी परत परत

गर्द-ओ-ग़ुबार ग़म से अटी है फ़ज़ा फ़ज़ा
होती थी कोई रुत जो सुहानी परत परत

लेकिन बना न क़ैस की सूरत हमारा नाम
सहरा की ख़ाक हम ने भी छानी परत परत

कोई जवाज़ दे न सका मेरी बात का
उस ने ग़लत कहा है ज़बानी परत परत

यादें दिला रही है सितमगर की बार बार
मुझ को रुला रही है निशानी परत परत

हासिल करूँगा जैसे भी मुमकिन हुआ उसे
मैं ने 'नबील' दिल में है ठानी परत परत
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Nabeel Ahmad Nabeel
दूर कुछ अहल-ए-जुनूँ की बे-क़रारी कीजिए
हो सके तो उन की थोड़ी ग़म-गुसारी कीजिए

जिन के बिस्तर से नहीं जाती कोई सिलवट कभी
उन की आँखों में वफ़ा के ख़्वाब जारी कीजिए

इश्क़ की क़िस्मत यही है इश्क़ का मंसब यही
जागिए शब-भर यूँही अख़्तर-शुमारी कीजिए

नोचिए ज़ख़्म-ए-जिगर को आँख भर कर रोइए
और कब तक हिज्र में यूँ आह-ओ-ज़ारी कीजिए

भेजिए कोई बुलावा कोई चिट्ठी भेजिए
अपने उन परदेसियों से शहर-दारी कीजिए

लोग हैं तय्यार हिजरत के लिए इस शहर से
फिर कोई ताज़ा नया फ़रमान जारी कीजिए

फिर कोई ताज़ा बपा होने को है इक मा'रका
नहर-ए-फ़ुरात-ए-कर्बला को फिर से जारी कीजिए

काम आएगा न कोई मुश्किलों में देखना
जिस क़दर भी दोस्तों से वज़्अ'-दारी कीजिए

तिश्ना-ए-तकमील ठहरे बात न कोई 'नबील'
गुफ़्तुगू जितनी भी है दिल में वो सारी कीजिए

आएगा कब साँस वर्ना दूसरा तुझ को 'नबील'
दिल के ज़ख़्मों की न ऐसे पर्दा-दारी कीजिए
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Nabeel Ahmad Nabeel
हमारे सर पे ये अक्सर ग़ज़ब होता ही रहता है
लहू उम्मीद का हम से तलब होता ही रहता है

निकलती ही नहीं दिल से कभी यादें मोहब्बत की
सितम उस दिल पे अपने रोज़-ओ-शब होता ही रहता है

पुराने लोग रहते हैं निगाहों में सदा मेरी
कोई पेश-ए-नज़र नाम-ओ-नसब होता ही रहता है

कोई सूरत तबाही की निकलती रहती है अक्सर
उजड़ने का कोई ताज़ा सबब होता ही रहता है

हमेशा ख़ून करते हैं हमारी आरज़ूओं का
तमन्नाओं का नज़राना तलब होता ही रहता है

ये लड़ना और झगड़ना है सभी मा'मूल की बातें
ख़फ़ा हम से वो अक्सर बे-सबब होता ही होता है

सितारों की तरफ़ उठती ही रहती है नज़र अपनी
शब-ए-तारीक में ऐसा तो सब होता ही रहता है

क़यामत होती रहती है बपा अब शहर में हर-सू
यहाँ महशर बपा ऐ दोस्त अब होता ही रहता है

सुख़न पामाल होता है 'नबील' इस अहद में हर पल
यहाँ पामाल हर लम्हा अदब होता ही रहता है
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Nabeel Ahmad Nabeel
जो नक़्श मिट चुका है बनाना तो है नहीं
उजड़ा दयार हम ने बसाना तो है नहीं

आँखों के दीप राह में उस के जलाएँ क्या
इस ने पलट के फिर कभी आना तो है नहीं

लाज़िम है चलना ज़ीस्त की राहों पे भी मगर
जो गिर पड़े किसी ने उठाना तो है नहीं

भर जाएगा ये थोड़ी सी चारागरी के बा'द
ताज़ा लगा है ज़ख़्म पुराना तो है नहीं

कब तक वफ़ा के मअनी बताता रहूँ उसे
उस बेवफ़ा ने राह पे आना तो है नहीं

कुछ देर ठहर जाए वो ख़ुद ही ख़ुदा करे
इस बार कोई ऐसा बहाना तो है नहीं

फिर ख़्वाहिशों के पेड़ पे बैठेंगे देखना
इन पंछियों का कोई ठिकाना तो है नहीं

अल्लाह-रे वफ़ाएँ ये ख़ूबान-ए-शहर की
मंज़र धुआँ धुआँ है सुहाना तो है नहीं

मंसूब कर दूँ मैं जो तिरी ज़िंदगी के साथ
यादों का मेरे पास ख़ज़ाना तो है नहीं

क्यूँ फिर किसी के दिल में मोहब्बत बसाएँ हम
जब आशिक़ी में नाम कमाना तो है नहीं

क़िस्मत है इस के सामने बन जाए कोई बात
वैसे कोई भी बात बनाना तो है नहीं

सोचूँ तो सारे लोग निशाने पे हैं मगर
देखूँ कोई किसी का निशाना तो है नहीं

वो अपना दर्द आप सुनाए तो बात है
हम ने किसी का दर्द सुनाना तो है नहीं

इक दूसरे की घात में बैठे हैं सब मगर
इस वक़्त ने किसी को बचाना तो है नहीं

है ताइरान-ए-शौक़ का मस्लक तो ख़ामुशी
है मस्लहत कि शोर मचाना तो है नहीं

इश्क़-ओ-नज़र का दाइमी रिश्ता अज़ल से है
मजनूँ ने शहर छोड़ के जाना तो है नहीं

हासिल किया न इस लिए ता'मीर का हुनर
हम ने नया जहान बसाना तो है नहीं

कैसे रसाई हो मिरी उस के मिज़ाज तक
अहवाल उस ने दिल का सुनाना तो है नहीं

महरूम हम न हों कभी माँ की दुआओं से
नायाब ऐसा कोई ख़ज़ाना तो है नहीं

देखेगा कौन चाक-ए-गरेबाँ को 'नबील'
फ़रहाद-ओ-क़ैस का ये ज़माना तो है नहीं
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Nabeel Ahmad Nabeel
तेरी तलाश तेरी तमन्ना तो मैं भी हूँ
जैसा तिरा ख़याल है वैसा तो मैं भी हूँ

ता'मीर जैसी चाहिए वैसी न हो सकी
बुनियाद अपनी रोज़ उठाता तो मैं भी हूँ

बोसीदा छाल पेड़ से लिपटी है गर तो क्या
अच्छे दिनों की आस पे ज़िंदा तो मैं भी हूँ

ऐ ज़िंदगी मुझे तो ख़बर तक न हो सकी
हर-चंद अपने ग़म का मुदावा तो मैं भी हूँ

महरूमी-ए-हयात का मुझ को भी ग़म तो है
महरूमी-ए-हयात पे रोता तो मैं भी हूँ

शायद निकल ही आए यहाँ कोई रास्ता
इस शहर-ए-बे-लिहाज़ में ठहरा तो मैं भी हूँ

ऐ ज़िंदगी तो किस लिए मायूस मुझ से है
तेरी तवक़्क़ुआत पे पूरा तो मैं भी हूँ

नोक-ए-क़लम पे सूरत-ए-इज़हार ये भी है
तुझ को ग़ज़ल के रूप में लिखता तो मैं भी हूँ

ऐ ज़िंदगी तू थामती मेरे वजूद को
तेरे लिए जहान में भटका तो मैं भी हूँ

ऐ काश जान ले तू मिरे दिल की दास्ताँ
तुम हो तो ज़िंदगी का तक़ाज़ा तो मैं भी हूँ

मुझ में जो इज़्तिराब है मेरे सबब से है
मुझ से न कुछ कहो कि समझता तो मैं भी हूँ

ये क्या कि ख़्वाहिशों का सफ़र ख़त्म ही न हो
ये क्या कि एक मोड़ पे ठहरा तो मैं भी हूँ

ये क्या कि एक तौर से गुज़रेगी ज़िंदगी
ये क्या कि एक राह पे चलता तो मैं भी हूँ

रखता नहीं हूँ दिल में हवाओं का कुछ भी ख़ौफ़
राहों में तेरी दीप जलाता तो मैं भी हूँ

तुम आए और समेट के दुनिया निकल गए
इस उम्र के सराब में भटका तो मैं भी हूँ

मैं भी दुखों से मावरा कब हूँ जहान में
बार-ए-ग़म-ए-हयात उठाता तो मैं भी हूँ

मैं भी भटक रहा हूँ ज़माने के साथ साथ
अंधा अगर जहान है अंधा तो मैं भी हूँ

तेरे बयान में है न मेरे बयान में
इस ज़िंदगी को देख दिखाता तो मैं भी हूँ

कुछ रौशनी की आस है मुझ को भी ऐ 'नबील'
आँखों के दीप रोज़ जलाता तो मैं भी हूँ

हँसती है मुझ पे दुनिया तो हँसती रहे 'नबील'
इस के मुआ'मलात पे हँसता तो मैं भी हूँ

रुक से गए 'नबील' ये किस के ख़याल में
तू देख ग़ौर से मुझे रुकता तो मैं भी हूँ
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Nabeel Ahmad Nabeel

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