तय हुआ है उस तरफ़ की रहगुज़र का जागना
मेरे पाँव में किसी लम्बे सफ़र का जागना
बोलते थे क्या परिंदे से दर-ओ-दीवार पर
याद है अब भी मुझे वो अपने घर का जागना
अब कहाँ मौसम है वो दार-ओ-रसन का दोस्तो
अब कहाँ उश्शाक़ के शानों पे सर का जागना
वर्ना मुझ को धूप का सहरा कभी न छोड़ता
आ गया है काम मेरे इक शजर का जागना
इक पुरानी आरज़ू ठहरी उजालों की तलब
इक पुराना ख़्वाब ठहरा है सहर का जागना
आसमाँ खुलते गए मुझ पर ज़मीनों की तरह
एक लम्हे के लिए था बाल-ओ-पर का जागना
मैं 'नबील' इस ख़ौफ़ से इक उम्र सोया ही नहीं
ज़िंदगी-भर का है सोना लम्हा-भर का जागना
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