तेरे आने का धोखा सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है
अजब है रात से आंखो का आलम
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है
सुना है रात भर बरसा है बादल
मगर वो शहर जो प्यासा रहा है
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
किसे ढूंढोगे इन गलियों में नासिर
चलो अब घर चलें दिन जा रहा है
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