Rabia Barni

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@rabia-barni

Rabia Barni shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Rabia Barni's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
है हुस्न का ए'जाज़ कि ए'जाज़-ए-नज़र क्या
आँखों में हैं पोशीदा तिरे लाल-ओ-गुहर क्या

अश्कों के सितारे कजी यादों के शरर हैं
अब उन के सिवा और नहीं शाम-ओ-सहर क्या

फिर अर्सा-ए-महताब है शब-ख़ूँ की कहानी
किरनों की सिनानें हैं कि हैं तार-ए-जिगर क्या

ये रात ये महताब ये ख़ुशबू ये तरन्नुम
अक्स-ए-ग़म-ए-जानाँ भी है तस्कीन असर क्या

हम किस से कहें क़िस्सा-ए-महरूमी-ए-बुलबुल
दुश्मन है गुलिस्तान ही सारा गुल-ए-तर क्या

जिस दर्द का दामन तिरी पलकों से बँधा हो
उस दर्द की हो सकती है तदबीर दिगर क्या

हर मरहला-ए-सख़्त मिरे शौक़ की मंज़िल
मंज़िल पे पहुँचना है ख़तर क्या है हज़र क्या

फिर दिल पे बरसती है तिरे प्यार की शबनम
अब ख़ौफ़-ए-बद-अंदेशी-ए-ख़ुर्शेद-ए-सहर क्या

इक धुँद सी छाई है सर-ए-जादा-ए-उम्मीद
हर गाम पे लाएँगे नई शम-ए-नज़र क्या

तज्दीद-ए-तमन्ना भी है वामांदगी-ए-शौक़
फिर क़ाफ़िला लुटता है सर-ए-राहगुज़र क्या

महफ़िल में ये कौन आया कि बुझने लगीं शमएँ
लो शाम से पैदा हुए आसार-ए-सहर क्या
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Rabia Barni
जिगर के ख़ून से तज़ईन-ए-बाल-ओ-पर कर दी
चमन-असीर ने यूँ ज़िंदगी बसर कर दी

हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल यूँ भी मुख़्तसर ही थी
तुम्हारे कहने से लो और मुख़्तसर कर दी

मिरी वफ़ा की कहानी से कौन वाक़िफ़ था
तुम्हारे जौर ने तश्हीर दर-ब-दर कर दी

क़दम बढ़ाओ कि मंज़िल क़रीब है शायद
तभी तो राह हरीफ़ों ने तंग तर कर दी

ये किस जहान-ए-तमन्ना का फिर ख़याल आया
कि जिस ख़याल ने हर शय अज़ीज़-तर कर दी

शबान-ए-ज़ुल्फ़ की बातें तुलूअ'-ए-रुख़ की ख़ैर
तमाम उम्र इबादत में मुख़्तसर कर दी

नए हैं जाम-ओ-सुबू बादा-ओ-ख़ुमार नया
और हम ने कोहना-शराबी में शब सहर कर दी

बहुत ही ख़ूब थी रूदाद-ए-मौसम-ए-हस्ती
तिरी निगाह के साए ने ख़ूब-तर कर दी

न मंज़िलों की ख़बर है न रास्तों का पता
मता-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र नज़्र-ए-राह पर कर दी

नए शुऊ'र नए फ़लसफ़े नई अक़दार
अय्यार-ए-इश्क़ ने हर काएनात सर कर दी
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