Radhe Shiyam Rastogi Ahqar

Radhe Shiyam Rastogi Ahqar

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Radhe Shiyam Rastogi Ahqar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Radhe Shiyam Rastogi Ahqar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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दिखाते हैं अदा कुछ भी तो आफ़त आ ही जाती है
सँभल कर लाख चलते हैं क़यामत आ ही जाती है

मोहब्बत में हैं सब्र-ओ-शुक्र के हर-चंद हम क़ाइल
मगर कुछ कुछ कभी लब पर शिकायत आ ही जाती है

जो सच पूछो तो हैं आशिक़ भी पैरव नाज़नीनों के
बदन में ना-तवानी से नज़ाकत आ ही जाती है

मजाज़ इक पर्दा-ए-इदराक है तो चश्म-ए-बीना को
किसी सूरत नज़र शक्ल-ए-हक़ीक़त आ ही जाती है

नहीं जज़्ब-ए-दिल-ए-आशिक़ से है मा'शूक़ को चारा
अगर बेदर्द भी हो तो मोहब्बत आ ही जाती है

बुतान-ए-सीम-तन के वस्ल से हम फ़ैज़ पाते हैं
वो आते हैं तो अपने घर में दौलत आ ही जाती है

तिरे अशआ'र-ए-रंगीं से भला फ़रहत न हो 'अहक़र'
कि इन फूलों से ख़ुश्बू-ए-फ़साहत आ ही जाती है
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Radhe Shiyam Rastogi Ahqar
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के चर्चे परेशानों में रहते हैं
मिरी दीवानगी के ज़िक्र दीवानों में रहते हैं

नहीं परवा-ए-ईमाँ काफ़िरान-ए-इश्क़ को हरगिज़
उन्हें काबा से क्या मतलब जो बुतख़ानों में रहते हैं

तलाश उस रश्क-ए-लैला की जो रहती है हमें हर-दम
उसी से क़ैस के मानिंद वो वीरानों में रहते हैं

मियान-ए-महफ़िल-ए-अहबाब है वो शम्अ' की सूरत
हम उस से लौ लगाए उस के परवानों में रहते हैं

फ़लक से बढ़ के रुत्बा हो न क्यूँ कर क़स्र-ए-जानाँ का
मलाएक जिस जगह अदना से दरबानों में रहते हैं

अजब है नेक सोहबत की न होता सैर इंसाँ में
मोहज़्ज़ब बनते हैं हैवान जो इंसानों में रहते हैं

न हो मज़मून आली क्यूँ भला अशआ'र 'अहक़र' में
सुख़न-दानों से सोहबत है ज़बाँ-दानों में रहते हैं
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Radhe Shiyam Rastogi Ahqar
ऐ जान हुस्न-ए-अफ़सर-ए-ख़ूबाँ तुम्हीं तो हो
मैं इक गदा-ए-इश्क़ हूँ सुल्ताँ तुम्हीं तो हो

पहूँची है आसमाँ पे तजल्ली जमाल की
कहते हैं लोग मेहर-ए-दरख़्शाँ तुम्हीं तो हो

सच सच ये कह रहा है तनासुख़ का मसअला
रूह-ए-अज़ीज़-ए-यूसुफ़-ए-कनआँ' तुम्हीं तो हो

आगे तुम्हारे सर्व है ग़ैरत से पा-ब-गुल
सहन-ए-चमन में सर्व-ए-ख़िरामाँ तुम्हीं तो हो

हर बात पर बिगड़ते हो रिंदों से शैख़-जी
सारे जहाँ में एक मुसलमाँ तुम्हीं तो हो

दिल मेरा ले के तुम ने खिलौना बना लिया
दुनिया में एक तिफ़्लक-ए-नादाँ तुम्हीं तो हो

बातों में सेहर चाल में महशर निगह में क़हर
साबित है इन से फ़ित्ना-ए-दौराँ तुम्हीं तो हो

दिल दे के तुम को क्यूँ न कहूँ माया-ए-हयात
मेरे जिगर तुम्हीं हो मिरी जाँ तुम्हीं तो हो

मद्दाह हों तुम्हारे न किस तरह हक़-पसंद
'अहक़र' बुतों के एक सना-ख़्वाँ तुम्हीं तो हो
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Radhe Shiyam Rastogi Ahqar
आसमाँ पर है दिमाग़ उस का ख़ुद-आराई के साथ
माह को तौलेगा शायद अपनी रा'नाई के साथ

सैर कर आलम की ग़ाफ़िल दीदनी है ये तिलिस्म
लुत्फ़ है इन दोनों आँखों का तो बीनाई के साथ

दिल कहीं है जाँ कहीं है मैं कहीं आँखें कहीं
दोस्ती अच्छी नहीं महबूब हरजाई के साथ

इस में ज़िक्र-ए-यार है इस में ख़याल-ए-यार है
अपनी ख़ामोशी भी हम-पल्ला है गोयाई के साथ

अहद-ए-पीरी में वो आलम नौजवानी का कहाँ
वलवले जाते रहे सारी तवानाई के साथ

दीदा-ए-आहू कहाँ वो अँखड़ियाँ काली कहाँ
क्या मुक़ाबिल कीजिए शहरी को सहराई के साथ

दिल नहीं गुर्ग-ए-बग़ल है ज़ब्त से ख़ूँ कर उसे
कार-ए-दुश्मन करते हैं ऐ दोस्त दानाई के साथ

एक बोसे पर गरेबाँ-गीर ऐ नादाँ न हो
तेरी रुस्वाई भी है आशिक़ की रुस्वाई के साथ

दिल तो दीवाना है 'अहक़र' तू भी दीवाना न हो
कोई सौदाई बना करता है सौदाई के साथ
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Radhe Shiyam Rastogi Ahqar
नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ
हर वरक़ ख़ुर्शेद के मानिंद नूर-अफ़शाँ हुआ

तेरी ही क़ुदरत से पैदा है ज़मीन-ओ-आसमाँ
ख़ाक का पुतला तजल्ली से तिरी इंसाँ हुआ

तेरे अब्र-ए-फ़ैज़ से ताज़ा है बाग़-ए-काएनात
क्या गुल-ए-आलम नसीम-ए-फ़ज़्ल से ख़ंदाँ हुआ

क़द्र रखता है सुलैमाँ से ज़्यादा मोर भी
जो गदा दरवाज़े का तेरे हुआ सुल्ताँ हुआ

याद से तेरी दिल-ए-नाशाद अपना शाद है
ज़िक्र तेरा मेरे दर्द-ए-फ़िक्र का दरमाँ हुआ

सर-बुलंदी में भी मुझ को फ़ख़्र की दौलत मिली
अल्लाह अल्लाह किस क़दर मुझ पर तिरा एहसाँ हुआ

हल्क़ा-ए-साहब-ए-दिलाँ में तेरा 'अहक़र' नाम है
ये समझ ले चाक तेरा नामा-ए-इस्याँ हुआ
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