भूखे को सूखी रोटी का टुकड़ा अच्छा लगता है
बात करे वो तल्ख़ भी उसका लहजा अच्छा लगता है
सोच समझकर चलता हूँ, सड़कों पर मैं गाड़ी से अब
मुझको मेरी माँ का हँसता चेहरा अच्छा लगता है
बात अलग है मजबूरी में, क्या क्या करना पड़ता है
वरना नन्हें काधों पर तो , बस्ता अच्छा लगता है
एक तरफ़ रख ख़ुशियाँ सारी खुलकर रो भी सकता हूँ
गर तू कह दे तुझको चेहरा रोता अच्छा लगता है
Read Full