दिल में मेरे ये डर सा उठा है
वो मेरे शहर में आ चुका है
मुझको कोई तो घर छोड़ आओ
जिसको भी मेरे घर का पता है
मैं उसे अब कहा ढूँढूँ जो वो
मेरे भीतर कहीं तो छुपा है
अब फ़क़त राख होना है बाक़ी
आग तो वो लगा ही चुका है
कौन से मुँह उसे मिलने जाऊँ
उसके घर आगे शीशा लगा है
हम कहा थे कहाँ आ चुके हैं
वो कहाँ था कहाँ जा चुका है
दूर से तुम नहीं दिख रहे और
वैसे भी मुझको चश्मा लगा है
किसको किसको मनाऊँ मैं जो अब
हर कोई मुझसे यूँ ही ख़फ़ा है
सारे आशिक़ यहाँ मरते हैं वो
उसका दिल ऐसा दश्त-ए-वगा है
Read Full