ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

  - Zafar Gorakhpuri

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा
तुझे ऐसा कुशादा आसमाँ कोई नहीं देगा

अभी ज़िंदा हैं हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे
हमारे बाद कोई इम्तिहाँ कोई नहीं देगा

जो प्यासे हो तो अपने साथ रक्खो अपने बादल भी
ये दुनिया है विरासत में कुआँ कोई नहीं देगा

मिलेंगे मुफ़्त शोलों की क़बाएँ बाँटने वाले
मगर रहने को काग़ज़ का मकाँ कोई नहीं देगा

ख़ुद अपना अक्स बिक जाए असीर-ए-आईना हो कर
यहाँ इस दाम पर नाम ओ निशाँ कोई नहीं देगा

हमारी ज़िंदगी बेवा दुल्हन भीगी हुई लकड़ी
जलेंगे चुपके चुपके सब धुआँ कोई नहीं देगा

  - Zafar Gorakhpuri

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